जय एकलिंगनाथ जी

जय एकलिंगनाथ जी

मेवाड़ दर्शन में आज , मेवाड़ के स्वामी श्री एकलिंगनाथ जी के बारे में कुछ जानकारी देने का प्रयास किया है।आशा है आप सभी को पसंद आएगी।
एकलिंगजी राजस्थान के उदयपुर जिले में स्थित एक मंदिर परिसर है। इस मंदिर की स्थापना बप्पा रावल ने 8वीं सदी में की थी, यह स्थान उदयपुर से लगभग 18 किमी उत्तर में दो पहाड़ियों के बीच स्थित है। वैसे उक्त स्थान का नाम ‘कैलाशपुरी’ है परन्तु यहाँ एकलिंग का भव्य मंदिर होने के कारण इसको एकलिंग जी के नाम से पुकारा जाने लगा। भगवान शिव श्री एकलिंग महादेव रूप में मेवाड़ राज्य के महाराणाओं तथा अन्य राजपूतो कुल देवता हैं।मान्यता है कि यहाँ पर राजा तो मात्र भगवान एकलिंगनाथ जी के प्रतिनिधि के रूप में शासन किया करते हैं। इसी कारण उदयपुर के महाराणा को दीवान जी कहा जाता है। ये राजा किसी भी युद्ध पर जाने से पहले एकलिंगनाथ जी की पूजा अर्चना कर उनसे आशीष अवश्य लिया करते थे। यहाँ मन्दिर परिसर के बाहर मन्दिर न्यास द्वारा स्थापित एक लेख के अनुसार डूंगरपुर राज्य की ओर से मूल बाणलिंग के इंद्रसागर में प्रवाहित किए जाने पर वर्तमान चतुर्मुखी लिंग की स्थापना की गई थी।

इतिहासकार बताते है कि एकलिंग जी को ही को साक्षी मानकर मेवाड़ के राणाओं ने अनेक बार यहाँ ऐतिहासिक महत्व के प्रण लिए थे। यहाँ के महाराणा प्रताप के जीवन में अनेक विपत्तियाँ आईं, किन्तु उन्होंने उन विपत्तियों का डटकर सामना किया। किन्तु जब एक बार उनका साहस टूटने को हुआ था, तब उन्होंने अकबर के दरबार में उपस्थित रहकर भी अपने गौरव की रक्षा करने वाले बीकानेर के राजा पृथ्वी राज को, उद्बोधन और वीरोचित प्रेरणा से सराबोर पत्र का उत्तर दिया। इस उत्तर में कुछ विशेष वाक्यांश के शब्द आज भी याद किये जाते हैं:
‘तुरुक कहासी मुखपतौ, इणतण सूं इकलिंग, ऊगै जांही ऊगसी प्राची बीच पतंग’।
एकलिंगजी मंदिर राजस्थान ही नही बल्कि भारत के सबसे प्राचीन मंदिर में से एक है एकलिंगनाथ मंदिर का निर्माण 734 ई. में बप्पा रावल द्वारा करवाया गया था। एकलिंगजी मेवाड़ शासकों के देवता रहे हैं। दिल्ली सल्तनत के शासकों द्वारा आक्रमण के दौरान एकलिंग नाथ जी के मंदिर और मूर्ति को नष्ट कर दिया गया था। जिसके बाद कुछ राजायों ने इस मंदिर के पुनःनिर्माण में अपना योगदान प्रदान किया।
15 वीं शताब्दी के अंत में, मालवा सल्तनत के घियाथ शाह ने मेवाड़ पर हमला किया और एकलिंगजी को फिर तबाह कर दिया। कुछ समय पश्चात कुंभ के पुत्र राणा रायमल ने घियाथ शाह को पराजित किया और उसकी रिहाई के लिए फिरौती प्राप्त की। इस फिरौती से रायमल ने मंदिर परिसर के अंतिम प्रमुख पुनर्निर्माण का संरक्षण किया, और वर्तमान मूर्ति को मुख्य मंदिर में फिर से स्थापित किया
एकलिंगजी मंदिर की स्थापत्य शैली अद्वितीय है जो कला प्रेमियों के लिए आकर्षण का केंद्र बनी हुई है। मुख्य मंदिर एक डबल मंजिला इमारत है जिसे नक्काशीदार टॉवर और पिरामिड स्टाइल छत के साथ बनाया गया है।
परिसर के अंदर, मुख्य संरचना में पिरामिड शैली की संरचना है जो आगे विषम छत द्वारा समर्थित है। मंदिर के मध्य में काले संगमरमर से बनी एकलिंगजी की एक चार-मुखी मूर्ति है, इसके चार मुख भगवान शिव के चार रूपों को दर्शाते हैं। मंदिर के सामने ही माँ कात्यायनी का मंदिर है।

इस मंदिर की चारदीवारी के अंदर और भी कई मंदिर निर्मित हैं, जिनमें से एक महाराणा कुंभा का बनवाया हुआ विष्णुमंदिर है।इस मंदिर को लोग मीराबाई का मंदिर कहते हैं। एकलिंग जी के मंदिर से थोड़ी दूर दक्षिण में कुछ ऊँचाई पर विक्रम संवत 1028 (ई. सन् 971) में यहाँ के मठाधीश ने ‘लकुलीश’ का एक मंदिर बनवाया तथा इस मंदिर के कुछ नीचे विंध्यवासिनी देवी का एक अन्य मंदिर भी स्थित है।
जनश्रुति से यह भी ज्ञात होता है कि बप्पा रावल का गुरुनाथ हारीतराशि एकलिंग जी के मंदिर का महन्त थे और उसी की शिष्य परंपरा ने मंदिर की पूजा आदि का कार्य सँभाला।एकलिंग जी के मंदिर के महंत, उक्त नाथों का एक प्राचीन मठ आज भी मंदिर के पश्चिम में बना हुआ है। बाद में नाथ साधुओं का आचरण भ्रष्ट हो जाने से मंदिर की पूजा आदि का कार्य गुसाइयों को सौंपा गया और वे उक्त मंदिर के मठाधीश हो गए। यह परंपरा आज भी चली आ रही है।
मंदिर के पास ही कैलाशपुरी का तालाब है, जो प्रकृति की गोद मे बना हुआ बहुत ही सुंदर नज़ारा पेश करता है। यहां पिकनिक मनाने का आनन्द लिया जा सकता है।
मंदिर के गर्भगृह का मुख्य द्वार पश्चिम दिशा में और गर्भगृह के सामने पीतल धातु से बनी शिव के वाहन नन्दी की मूर्ति है। मंदिर परिसर में 108 देवी-देवताओ के छोटे-छोटे मंदिर स्थित हैं, और इन मंदिरों के बीच में श्री एकलिंग जी मंदिर स्थापित हैं। मंदिर के गर्भगृह में प्रवेश करने आज्ञा किसी को भी नहीं हैं, श्री एकलिंग जी दर्शन एवं वंदना कठघरे से बाहर रहकर ही करनी पड़ती हैं। एकलिंगजी मदिर में श्री एकलिंगजी का श्रृंगार फूलो, रत्नों नियमित रूप से प्रतिदिन किया जाता है। मंदिर के गर्भगृह में प्रवेश वहाँ के पुजारियों से आज्ञा लेकर व उनके द्वारा दिए गए विशेष वस्त्र पहनकर ही मिलती हैं।
एकलिंगजी मंदिर में दर्शन का पहला समय सुबह 4:15 बजे से 6:45 बजे तक होता है। दूसरा समय सुबह 10 से दोपहर 1:30 बजे तक का होता है और दर्शन करने का तीसरा समय शाम 5:15 बजे से 7:45 बजे तक का होता है।
यहां साल भर किसी भी समय जा सकते हैं, उदयपुर से यहां आने के लिए हर प्रकार की वाहन सुविधा उपलब्ध है।

नोट:- कैलाशपुरी के मिर्ची बड़े बहुत प्रसिद्ध है, एक बार स्वाद जरूर चखें।

जय मेवाड़, जय एकलिंगनाथ जी

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